मैं अच्छी हूं घबराऊ नको
मैं अच्छी हूं घबराऊ नको,
ऐसा
खत में लिखो
कोणी मेल्याने तुझको
लिखा, मैं निकली ऱोडा पर
अगर तुझको शक है
मुझपर, नहीं निकलूंगी बाहर
मैं पानी को
जाऊं क्या नक्को, ऐसा खत में लिखो
सौ रुपये का हिसाब मांगे,
तो
मैंने घर में क्या खायी
पानी के बीस दी, लाईट के तीस दी, पच्चीस का राशन लाई
दी पच्चीस दुधवाले को, ऐसा खत में लिखो
बाबा को आया बुखार खांसी,
प्रायवेट
में गयी उसे लेकर
सौ रुपया लिया
इंजक्शन दिया, असर नहीं हुआ बच्चे पर
मैं जे. जे. को जाऊं क्या नक्को,
ऐसा
खत में लिखो
आवाज-ए-निस्वां है महिला मंडल,
जाती
मैं उस मीटिंग को
तेरी बहन को शौहर जब
पीटता, जाती सब धमकाने को
उसको मदद मैं
करूं क्या नक्को, ऐसा खत में लिखो
बेबी को मैंने स्कूल में भेजा, खूब अच्छी प़ढती है
औरत ने भी है लिखना प़ढना,
आवाज-ए-निस्वां का मत है
मैं भी प़ढने को जाऊं
क्या नक्को, ऐसा खत में लिखो
जब से गया तू बिग़डा है माहौल, फसाद का डर है मुझको
म़जहब के नाम पे कैसे ये झग़डे, अमन
से रहना है सबको
ये बस्ती में समझाऊं
क्या नक्को, ऐसा खत में लिखोग्न
साउदी जा के दुबई जा के, कितने दिन हम टिकेंगे
इसी समाज को हमको बदलना,
बच्चों
के लिये है अपने
मोर्चे में जाती मीटिंग में जाती, सुधरने जिंदगानी को
तू भी आ जा साथ देने को,
ऐसा
खत में लिखो
- शहनाज शेख/गीता महाजन
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