रुके न जो, झुके न जो
रुके न जो, झुके न जो, दबे न जो, मिटे न जो
हम वो इन्कलाब हैं, जुल्म का जवाब हैं
हर शहीद, हर गरीब का हमीं तो ख्वाब हैं
रुके न जो...
ल़ड रहे हैं इसलिए कि प्यार जग में जी सके
आदमी का खून कोई आदमी
न पी सके
मालिकोंऽऽ
मालिकों मजूर के, नौकरों हुजूर के
भेद हम मिटाएंगे, समानता को लाएंगे
रुके न जो...
जानते नहीं हैं फर्क हिन्दू-मुसलमान
का
मानते हैं रिश्ता, इन्सान से इन्सान का
धर्म केऽऽ
धर्म के देश के, भाषा और भेष के
फर्क को मिटाएंगे, समानता को लाएंगे
रुके न जो...
मानते नहीं हैं हुक्म जुल्मी हुक्मरान का
युध्द आज चल रहा है, आदमी हैवान का
सत्य कीऽऽ
सत्य की सम्भाल ढाल, क्रांति की ले मशाल
एकता के जोर पर, जुल्म से ल़ड जायेंगे
रुके न जो...
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